सोनाक्षी सिन्हा और जाहिर इकबाल ने की special marriage act के अनुसार शादी ।
स्पेशल मैरिज एक्ट एक ऐसा एक्ट है जिसमे उन पार्टनर्स की शादी करवाई जाती है जब दोनों पार्टनर्स अलग अलग धर्म से आते हो । भारत देश में शादी अगर कानूनी तौर पर करे तो हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 के अनुसार होती है जो की सभी हिंदुअ पर लागु होती है । इस अधिनियम में विवाह और विवाह विच्छेद के प्रावधान दिए गए है जो की हिन्दू , बोध , जैन , सिख पर लागु होते है । आज हम इस ब्लॉग के द्वारा ये जानेगे की अगर विवाह करने वाले पक्षकार दोनों ही अलग अलग धर्म से हो तो विवाह की प्रक्रिया क्या होगी ।
special marriage act:1954
विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत दो अलग अलग धार्मिक पृष्टभूमि से आने वाले लोगो के बीच विवाह होता है । इसके अंतर्गत पति या पत्नी या दोनों में से कोई भी एक पक्षकार जो की हिन्दू, जैन, बौद्ध , सिख नहीं है ऐसे पक्षकारो का विवाह विशेष विवाह अधिनियम 1954 के अनुसार धार्मिक अनुष्ठानो या पंजीकरण के द्वारा होगा । इस अधिनियम में अनुष्ठान और पंजीकरण दोनों के लिए प्रक्रिया के प्रावधान है ।
special marriage act में पंजीकरण की प्रक्रिया –
- सूचना -विवाह की निर्धारित तिथि से 30 दिन पहले दोनों पक्षकारो को विवाह अधिकारी को सभी अनिवार्य दस्तावेज के साथ नोटिस देना होगा । हालांकि ये प्रक्रिया ऑनलाइन भी की जा सकती है । इसके दस्तावेज निम्न है – 1- पहचान पत्र जिसमे दोनों पक्षकारो के पैन कार्ड और वोटर आई डी कार्ड होंगे । 2- पत्ता प्रमाण पत्र – इसके अंतर्गत दोनों पक्षकारो के ऐसे कार्ड होनेचाहिए । जिसमे उनका पूरा एड्रेस हो । 3- पति या पत्नी का मृत्यु प्रणाम पत्र या तलाक प्रणाम पत्र – अगर पहले से कोई पक्षकार विवाहितhai तो । 4- दोनों पक्षकारो की फोटो और शपथ पत्र ।
- नोटिस की एक कॉपी कार्यालय में लगाई जाएगी और एक एक प्रति पंजीकृत डाक द्वारा दोनों पक्षकारो के एड्रेस पर भेजी जाएगी ।
- नोटिस जारी होने के 30 दिन बाद अगर कोई आपत्ति आती है तो उसको गौर किया जायेगा और अगर कोई आपत्ति नहीं आती है तो SDM द्वारा ऐसे विवाह का पंजीकरण कर दिया जायेगा ।
- पंजीकरण की तिथि पर दोनों पक्षकारो को तीन तीन गवाहों के साथ उपस्थित होना आवश्यक है ।
special marriage act कब बना ?
यह अधिनियम संसद द्वारा 19 वीं सदी में बनाया गया वैसे तो विवाह के लिए सभी अपने अपने पर्सनल लॉ है जैसे हिन्दू विवाह अधिनियम , मुस्लिम विवाह अधिनयम किन्तु अलग अलग धार्मिक पृष्ट्भूमि में आने वाले लोग और विदेश में रहे वाले भारतीय लोग चाहे वो किसी भी धर्म से हो उसके विवाह के लिए ये special marriage act लाया गया यह उन सब पर लागु होगा जो हिन्दू , सिख , बौद्ध नहीं हो । पहली बार यह अधिनयम 1872 में लागु कर दिया था परन्तु कुछ अप्राप्तायें इसमें पायी गयी तो संशोधन करके 1954 में इस एक्ट को लागु किया गया ।
क्या इस special marriage act में विवाह करने पर धर्म बदलना जरुरी है ?
इसका उत्तर सभी को जानना आवश्यक है । जी हां आपकी जानकारी के लिए बता देते है की अगर कोई विवाह जो विशेष विवाह अधिनियम के तहत हो रहा है उसमे किसी भी पक्षकार को धर्म परिवर्तन करने की जरुरत नहीं होती है शादी के बाद भी पक्षकार अपने अपने धर्मो को मान कर उनका पालन कर सकता है ।
अगर कोई पक्षकार जिनमे एक हिन्दू , सिख , बोध नहीं है और हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह कर रहे है या मुस्लिम पर्सनल लॉ में विवाह कर रहे है जबकि एक पक्षकार मुस्लिम नहीं है तो दूसरे पक्षकार को धर्म परिवर्तन करना होता है और उसे दूसरे पक्षकार का धर्म अपनाना होगा तभी पर्सनल लॉ में शादी valid मानी जाएगी अन्यथा नहीं ।
special marriage act का महत्व :
इस एक्ट को किसी उदेश्य से ही पारित किया गया है यह एक्ट प्रेम , समानता , एकता को बढ़ावा देता है । यह विभिन्न जातियों , धर्मो और समुदाय में विवाह करने की अनुमति देता है ।
- धर्म निरपेक्षता को बढ़ावा – इस तरह के विवाह जो अंतर्जातीय धर्म में हो रहे है इनको कानून की नज़र में मान्य किया गया है अगर वो इस अधिनियम के तहत होता है तभी इससे भारत में धर्म निरपेक्षता को बढ़ावा मिलता है और लोगो में असमानता को काम किया जा सकते है ।
- व्यक्तियों के लीगल राइट्स की रक्षा – विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह बंधन में बंधे पक्षकारो के लीगल राइट्स की रक्षा की जाएगी । इस एक्ट के तहत ऐसे कपल को कोई परेशान नहीं कर सकता ।
- जबरदस्ती शादी करने पर रोक लगाना – समाज में जातिवादिता चारो तरफ फैली हुई है उनको ख़त्म किया जा सकता है इस एक्ट के द्वारा क्युकी ये एक्ट अलग अलग धर्मो में आने वाले लोगो के विवाह को मान्य बनाता है ।
- कानूनी अधिकार- इस एक्ट के तहत जो विवाह होंगे उन पक्षकारो के बच्चो को कानून में विरासत के अधिकार दिए जायेंगे । ऐसे बच्चो को उनके खानदान का लीगल वारिस माना जायेगा
- पंजोकरण की प्रक्रिया को सरल बनाना – इस एक्ट का सबसे बड़ा महत्व यही है की जो अलग धर्मो में शादी करना चाहते है उनके शादी के पंजीकरण प्रक्रिया को सरल बनाना ।
special marriage act में विवाह विच्छेद :
अन्य अधिनियम के अनुसार इस विशेष विवाह अधिनियम में भी विवाह विच्छेद के प्रावधान दिए गए है अगर दोनों पक्षकार या कोई एक पक्षकार ऐसे विवाह से निकलना चाहते है तो उनका विवाह विच्छेद निम् कंडीशन पर हो सकता है –
- क्रूरता – विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह होने पर अगर कोई एक पक्षकार दूसरे के ऊपर किसी भी प्रकार की क्रूरता करता है जैसे – शारीरिक , मानसिक , आर्थिक या सेक्सुली ,, तो दूसरा पक्षकार ऐसी क्रूरता के बेस पर डाइवोर्स ले सकता है ।
- व्यभिचारी – दोनों पक्षकारो में से कोई भी एक पक्षकार अगर पति या पत्नी के होते हुए भी किसी अन्य के साथ सम्बन्ध में है तो पीडिड पक्षकार विवाह विच्छेद करवा सकता है ।
- परित्याग – agar दोनों पक्षकारो में से किसी भी एक ने अपना जीवन त्याग दिया हो या सन्यास ले लिया हो तो दूसरा पक्षकार विवाह विच्छेद करवा सकता है ।
- दूसरे धर्म में परिवर्तन – विवाह के समय जब ऐसी कोई बात ही नहीं हुई थी और इस अधिनियम के अंतर्गत विवाह होने के बाद अगर दोनों में से कोई भी पक्षकार अपने पार्टनर को अपना धर्म परिवर्तन करने के लिए बाध्य करता है या धर्म परिवर्तन करवाया जाता है तो पीड़ित पक्षकार विवाह विच्छेद करवा सकता है ।
- मानसिक विकार- दोनों में से कोई भी एक पक्षकार मानसिक विकार से ग्रस्त है जो की विवाह के समय पता नहीं था विवाह के बाद पता चलता है तो पीड़ित पक्षकार विवाह विच्छेद करवा सकते है ।
- आपसी सहमति – दोनों पक्षकार अगर किसी कारण वश एक साथ नहीं रहना चाहते है तो आपसी सहमति से विवाह को विच्छेद करवा सकते है ।
मुझे उम्मीद है आप इस ब्लॉग के द्वारा विशेष विवाह अधिनियम के बारे में अच्छे से समझ गए होंगे । फिर भी कोई डाउट हो तो प्ल्ज़ कमेंट करे ।